यूँ ही बेसबब मुस्कुराते मुस्कुराते
दर्द ऐ दिल को ख़ुद से छिपाते
कौन सी मंजिल थी चले थे किस जानिब
आ गए हैं किस मोड़ पर आते आते ....
फुर्सत किसे थी सुने सोज़ ऐ दिल
थी ख्वाहिश भी कहाँ
के हाले -दिल सुनाते
ज़ख्म भी छुपा लिए थे
बिखेर के तबस्सुम
क्या करें जो रो पड़े
मुस्कुराते- मुस्कुराते ......
वो मेरी बेफिक्र हँसी
वो कश्तिये नूह सा दिल
के जिसमे चाहता तो
सौ समन्दर समां जाते
दर्द अपना ..... प्यार तुम्हारा और तुम भी
खो दिया है सब तुम्हे पाते - पाते ........
Thursday, February 12, 2009
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subhaan allah ! kya baat hai
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