Wednesday, June 16, 2010

दाग़

दिल के जख्मों से
जब ज़ज्बातों का लहू बहा
वक्त ने दिया मरहम और ये कहा
भूल जाओ भूल जाओ.
.
.
.
ओढ़ के ख़ुशी के नक़ाब
भुला तो दिया है मैंने भी
पर उस ज़ख़्म का दाग़ जो बाकी है
उसे जो देखूं
यादों का कांटा
फिर कोई चुभ जाता है
फिर एक नया ज़ख्म उभर आता है.......