दिल के जख्मों से
जब ज़ज्बातों का लहू बहा
वक्त ने दिया मरहम और ये कहा
भूल जाओ भूल जाओ.
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ओढ़ के ख़ुशी के नक़ाब
भुला तो दिया है मैंने भी
पर उस ज़ख़्म का दाग़ जो बाकी है
उसे जो देखूं
यादों का कांटा
फिर कोई चुभ जाता है
फिर एक नया ज़ख्म उभर आता है.......
Wednesday, June 16, 2010
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